देहरादून संवाददाता
आज देहरादून में अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष रवि पंवार जी से बात करने का मौका मिला और उनसे मैंने हिंदुस्तान की पहली निर्वासित सरकार का गठन करने वाले महा दानी, विलक्षण प्रतिभाशाली राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी के बारे में बात की तो उन्होंने उनके बारे में कुछ यूं वर्णन किया। अध्यक्ष जी बताया
कि 1 दिसंबर 1886 को जन्मे राजा महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस की मुरसान रियासत के राजा थे। महान समाज सुधारक और दानवीर राजा साहब “आर्यन पेशवा” के नाम से प्रसिद्ध थे। जाट परिवार से ताल्लुक रखने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह की गिनती अपने क्षेत्र के पढ़े-लिखे लोगों में होते थे। उनका विवाह जींद रियासत की बलबीर कौर जी से हुआ था उनकी बारात के लिए हाथरस से संगरूर के बीच दो विशेष ट्रेनें चलाई गई थी।

1909 में वृंदावन में राजा साहब ने प्रेम विद्यालय की स्थापना की जो तकनीकी शिक्षा के लिए भारत में इकलौता था। मदन मोहन मालवीय जी ने उद्घाटन समारोह में उपस्थिति दर्ज की थी। इसको बनाने के लिए राजा साहब ने अपने पांच गांव, वृंदावन का राजमहल और बहुत संपत्ति का दान किया था।
राजा साहब जाति, वर्ग, रंग, देश आदि के द्वारा मानवता को बांटने के घोर विरोधी थे।
प्रथम विश्व युद्ध के समय भारत को आजादी दिलाने के इरादे से उन्होंने कई देशों की यात्रा की।
इससे पहले देहरादून से राजा साहब एक समाचार पत्र का प्रशासन भी करते थे।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी ने 50 से ज्यादा देशों की यात्रा की थी। इसके बावजूद उनके पास भारतीय पासपोर्ट तक नहीं था उन्होंने अफगान सरकार के सहयोग से 1 दिसंबर 1915 को पहली निर्वाचित हिंद सरकार का गठन किया, आजादी का बिगुल बजाते हुए वह 31 साल 8 महीने तक विदेश में रहे हिंदुस्तान को आजाद करने का यह देश के बाहर पहला प्रयास था अंग्रेज सरकार से पासपोर्ट मिलने की बात संभव ही नहीं थी उनके पास अफ़ग़ानिस्तान सरकार का पासपोर्ट था।
कहते हैं राजा महेंद्र प्रताप जी ने हिंदुस्तान छोड़ने से
पहले देहरादून के डीएम कार्यालय के जरिए पासपोर्ट बनवाने का प्रयास किया था, लेकिन एक अखबार में जर्मनी के समर्थन में एक लेख लिखने के कारण उनका पासपोर्ट रोक दिया गया था। इसके बाद राजा महेंद्र प्रताप सिंह समुद्री मार्ग से ब्रिटेन पहुंचे। बाद में उन्होंने स्विट्जरलैंड, जर्मनी, सोवियत संघ, जापान, चीन, अफगानिस्तान, ईरान, तुर्की आदि देशों की यात्रा की 1946 में वह शर्तों के साथ हिंदुस्तान वापस आ पाए।
1957 के संसदीय आम चुनाव में राजा महेंद्र प्रताप जी ने अटल बिहारी वाजपेई जी को करारी शिकायत दी थी। इस चुनाव में मथुरा से निर्दलीय चुनाव लड़ा और उसे समय भारतीय जन संघ के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेई जी की जमानत तक जप्त कर दी थी इस चुनाव में राजा महेंद्र प्रताप जी को सर्वाधिक वोट मिले थे।
जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान उनकी विदेश नीति में जर्मनी और जापान मित्र देश नहीं थे। जबकि राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी ने इन देशों से मदद मांग कर आजादी की लड़ाई शुरू की थी। ऐसे में राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी की शुरू से ही कांग्रेस में बहुत ज्यादा नहीं बनती थी।
आज से हम संयुक्त राष्ट्र संघ कहते हैं जिसकी स्थापना 1945 में हुई थी।
ऐसी ही परिकल्पना राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी ने बहुत पहले विश्व शांति के लिए “संसार संघ” की की थी।
उन्होंने प्रेम धर्म और संसार संघ की परिकल्पना के जरिए भारतीय संस्कृति के प्राण तत्व वसुदेव कुटुंबकम को साकार करने का प्रयास किया था।
आजादी के बाद किसी भी राजनीतिक दल ने राजा महेंद्र प्रताप जी के साथ न्याय नहीं किया जो सम्मान के वह हकदार थे वह सम्मान उन्हें नहीं मिला अपने समय के बहुत बड़े क्रांतिकारी महत्वाकांक्षा रहित राजनीतिक महान त्यागी शिक्षा विद एवं देशभक्ति थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी।
उनका मानना था कि संसार संघ की कल्पना से देश कभी आपस में नहीं लड़ेंगे सारा विश्व पांच प्रांतों में विभक्त हो, जिसकी एक राजधानी हो, एक सेना हो ,एक न्यायालय हो,व एक कानून हो। संसार संघ की सेना में सभी देशों के सैनिक शामिल हो ।किसी भी देश की शक्ति संसार संघ की सेना से अधिक ना हो एक सेना होने के नाते प्रत्येक देश का सैनिक पर होने वाला खर्चा रुक जाएगा, और धन का प्रयोग मानव कल्याण के लिए खर्च किया जा सकता है ।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह जी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के विकास के लिए 1920 मैं जमीन दी थी।
आज भी यूनिवर्सिटी में कई जगह उनकी बड़ी-बड़ी तस्वीर लगी है, उन पर कई किताबें जो लिखी गई है वह वहां की लाइब्रेरी में उपलब्ध है उनके सम्मान में आज भी वहां सेमिनार होते रहते है।
उन्होंने बताया कि वृंदावन में स्थित राजा महेंद्र प्रताप जी की समाधि आज बुरी हालत में है। अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप जी के नाम से बनने जा रहे हैं राजकीय विश्वविद्यालय का शिलान्यास माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने किया था, लेकिन वृंदावन स्थित राजा साहब की समाधि स्थल की ओर किसी का भी ध्यान आज तक नहीं गया।
इसका नवीनीकरण होना चाहिए।
ओर
देश की आजादी के लिए जो योगदान राजा साहब का रहा उसके हिसाब से उन्हें सम्मान मिलना चाहिए और हम
भारत सरकार से राजा साहब के लिए भारत रत्न की मांग करते हैं।










