लाइव देवभूमि भारत संवादाता देहरादून:
उत्तराखंड में पहली बार मखाना सुपर फूड के उत्पादन को लेकर कवायद शुरू की जा रही है. मखाना उत्पादन को लेकर क्या कुछ प्लानिंग है और क्या संभावनाएं हैं,
उत्तराखंड में मखाना उगाने की कवायद: भारत सरकार में सेंट्रल मखाना बोर्ड द्वारा देश में सुपर फूड्स यानी ऐसे खाद्य पदार्थ, जो की कम कैलोरी और ज्यादा पोषक तत्व वाले गुण रखते हैं, जिनमें विटामिन मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, उन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके तहत देश भर में मखाना उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसी को लेकर अब पहली दफा उत्तराखंड में भी मखाना उत्पादन की कवायद शुरू की जा रही है.
सुपर फूड है मखाना: मखाना आज हर एक घर और रसोई का हिस्सा है. इसके गुणकारी होने की वजह से इसे सुपर फूड कैटेगरी में रखा जाता है. लेकिन भले ही हम सबने मखाने का स्वाद चखा है, और हम इसके गुणों के बारे में भी जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि मखाने का उत्पादन कैसे किया जाता है. इसकी पैदावार किस तरह से की जाती है. इसे खाने लायक किस तरह से बनाया जाता है. तो सबसे पहले आपको मखाना तैयार करने की क्या प्रक्रिया होती है ये बताते हैं.
कैसे बनता है मखाना? मखाना कमल के पौधे से तैयार किया जाता है. इसकी खेती तालाबों में की जाती है. मखाने की खेती अक्टूबर ओर नवंबर से शुरू होती है, जब इसके बीज बोए जाते हैं. अप्रैल-मई में यह कांटेदार फल के रूप में तैयार हो जाता है. तैयार होने के बाद यह फल फटकर बीज पानी में तैरने लगते हैं. किसान इन्हीं बीजों को निकाला कर उन्हें सुखाते हैं. अच्छे से सूख जाने के बाद इन बीजों को चूल्हे पर भूना जाता है. ठीक उसी समय जब बीज गरम होते हैं, तो उन्हें हथौड़े से पीटकर सफेद मखाने में बदला जाता है. मखाना उत्पादन में 7-8 महीने लगते हैं. अभी फिलहाल देश में बिहार राज्य इसका सबसे बड़ा उत्पादक है. सामान्य तौर पर देखा जाए तो मखाना कमल के फूल का बीज है, जिसे ‘वॉटर लिली’ भी कहते हैं. भारत में, खासकर बिहार (दरभंगा, मधुबनी) में इसका सबसे ज़्यादा उत्पादन होता है.
मखाना उत्पादन बहुत मेहनत का काम है :
उत्तराखंड में मखाना उत्पादन की संभावनाएं और तैयारी: उत्तराखंड उद्यान विभाग उत्तराखंड में मखाना उत्पादन को लेकर काम करेगा. विभाग में स्टेट कोऑर्डिनेटर बागवानी मिशन डॉक्टर सुरभि पांडे ने बताया कि-
सभी जनपदों को निर्देशित किया गया है कि जितने भी किसान मखाना उत्पादन को लेकर उत्सुक हैं, उनसे आवेदन लिया जाए. इस योजना को प्रभावी तौर पर धरातल पर उतरने के लिए काम शुरू किया जाए. साथ ही मखाना उत्पादन को लेकर आने वाली नई योजना को लेकर इसकी प्रक्रियाओं के बारे में भी किसानों को जानकारी दी जाए।
अभी मखाना शब्द ही उत्तराखंड के किसानों के लिए बिल्कुल नया होगा. अब तक उत्तराखंड में इसका उत्पादन नहीं किया जाता है, तो निश्चित तौर से इस योजना को धरातल पर उतारने के लिए किसानों को जागरूक करना, उन्हें प्रशिक्षित करना एक सबसे बड़ी चुनौती रहेगी. यह विभाग के लिए भी बिल्कुल नई चुनौती है.
उद्यान विभाग में स्टेट कोऑर्डिनेटर बागवानी मिशन डॉक्टर सुरभि पांडे ने बताया कि केंद्र के निर्देशों के क्रम में सबसे पहले प्रदेश में मखाना उत्पादन को लेकर उद्यान विभाग में निदेशक स्तर पर नोडल अधिकारी का चयन किया जाएगा. इसके बाद इस योजना को धरातल पर उतरने के लिए कार्य योजना तैयार की जाएगी. इस कार्य योजना में उत्तराखंड के सभी 13 जनपदों में मखाना उत्पादन की संभावनाओं को लेकर डाटा तैयार किया जाएगा. डॉक्टर सुरभि ने बताया कि-
किस जनपद में कितने जलाशय और कमल उत्पादन की कितनी संभावनाएं हैं, इसको लेकर स्टडी की जाएगी. योजना के तहत काम करने में रुचि रखने वाले किसानों के आवेदन लिए जाएंगे. प्राप्त किसानों के आवेदन में किस तरह से उन्हें योजना में लाभान्वित किया जाना है, किस तरह से विभाग किसानों को मदद करेगा, इसको लेकर प्राप्त आवेदनों को भारत सरकार की मखाना पॉलिसी के तहत केंद्र को भी भेजा जाएगा.
उत्तराखंड के मैदानी जनपदों में मखाना उत्पादन की अपार संभावनाएं: जैसा कि अब हम जान चुके हैं कि मखाना उत्पादन कमल के बीज से होता है, तो निश्चित तौर से मखाना उत्पादन के लिए बड़े-बड़े जलाशय की आवश्यकता होती है. जिस तरह से कमल जलाशय में खिलता है और वहां पर मिट्टी की भी अधिकता रहती है, वहीं उसका बीज भी होता है. कमल कीचड़ में खिलता है और इस कीचड़ में कमल का बीज भी होता है और उस बीज को इकट्ठा करके मखाना उत्पादन किया जाता है. डॉक्टर सुरभि पांडे के अनुसार उत्तराखंड के मैदानी जिलों में इसकी अपार संभावनाएं हैं. देहरादून, हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिलों में मौजूद बड़े-बड़े तालाबों में मखाना उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं. विशेष तौर से काशीपुर इसका एक मुख्य केंद्र बन सकता है.










